Oleo Bone
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sindhu ghati sabhyata in hindi

सिंधु घाटी सभ्यता भारतीय उपमहाद्वीप की एक प्राचीन सभ्यता थी जो लगभग 3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक फली-फूली।  इसका उत्कर्ष काल 2600 से 1900 ईसा पूर्व के बीच था।यह सभ्यता मुख्य रूप से वर्तमान पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिम भारत में फैली हुई थी। यह सभ्यता विश्व की प्राचीन सभ्यताओ मे से एक है। सिंधु घाटी सभ्यता का नाम उसके भौगोलिक स्थान के आधार पर पड़ा है। यह सभ्यता मुख्य रूप से सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के किनारे विकसित हुई थी, इसलिए इसे  सिंधु घाटी सभ्यता कहा जाता है। इस नाम का अर्थ है “सिंधु नदी की घाटी में विकसित हुई सभ्यता।” सिंधु नदी (Indus River) भारतीय उपमहाद्वीप की प्रमुख नदियों में से एक है, और इस सभ्यता के अधिकांश प्रमुख स्थल इसी नदी के किनारे बसे हुए थे।

खोज और खुदाई:

1920 के दशक में जब पुरातत्वविदों ने इस क्षेत्र में खुदाई की, तो उन्होंने एक उन्नत और प्राचीन सभ्यता के अवशेष पाए। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे प्रमुख स्थलों की खोज ने इस सभ्यता की उन्नति और विकास को उजागर किया। हड़प्पा (पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित) और मोहनजोदड़ो (पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित) इस सभ्यता के प्रारंभिक खोजे गए स्थल थे। क्योंकि हड़प्पा इस सभ्यता का सबसे पहला खोजा गया स्थल था। इसलिए इसे कभी-कभी “हड़प्पा सभ्यता” भी कहा जाता है,  सिंधु घाटी सभ्यता के खोजे गए प्रमुख दो  शहर और स्थल आपको आगे पढने को मिलेंगे –

1. हड़प्पा :

हड़प्पा पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित है। यह स्थल रावी नदी के तट पर स्थित है।  हड़प्पा स्थल की पहली खुदाई 1921 में दयाराम साहनी द्वारा की गई थी। हड़प्पा स्थल की खुदाई के दौरान कई महत्वपूर्ण पुरातात्विक अवशेष मिले हैं, जो सिंधु घाटी सभ्यता की उन्नति, संस्कृति, और जीवन शैली के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। यहां हड़प्पा स्थल की खुदाई में मिले प्रमुख अवशेषों की जानकारी दी जा रही है:

दुर्ग और निचला नगर:

शहर को मुख्यतः दो भागों में बांटा गया था – दुर्ग (ऊँचा क्षेत्र) और निचला नगर । दुर्ग  में शासक वर्ग और उच्च वर्ग के लोग रहते थे, जबकि निचले नगर में आम लोग रहते थे।

जल निकासी प्रणाली :

हड़प्पा में अत्यंत उन्नत जल निकासी प्रणाली पाई गई है। प्रत्येक घर में स्नानगृह और कुंए थे, और सड़कों के किनारे नालियाँ बनी हुई थीं।

मकान और इमारतें :

खुदाई में पक्की ईंटों से बने मकान मिले हैं। इन मकानों में कई कमरे, आंगन, और स्नानगृह होते थे।

सार्वजनिक भवन:

खुदाई में ग्रेनरी (अनाज भंडार) और अन्य सार्वजनिक भवन भी मिले हैं।

शिल्प और कला :

टेराकोटा, तांबे, कांसे, और पत्थर की मूर्तियाँ मिली हैं। इनमें मानव और पशु आकृतियाँ शामिल हैं।

मुहरें:

हड़प्पा से सैकड़ों मुहरें मिली हैं, जिन पर विभिन्न पशु आकृतियाँ और चित्रलिपि अंकित हैं। ये मुहरें व्यापार और प्रशासनिक कार्यों में उपयोग की जाती थीं।

बर्तन:

विभिन्न प्रकार के मिट्टी के बर्तन मिले हैं, जिन पर सुंदर चित्रकारी और डिजाइन बने हुए हैं।

आभूषण और धातुकर्म :

खुदाई में सोने, चांदी, तांबे और अन्य धातुओं से बने आभूषण मिले हैं। इनमें हार, कंगन, अंगूठियाँ, और अन्य आभूषण शामिल हैं।

औजार और हथियार:

तांबे और कांसे के बने औजार और हथियार भी मिले हैं।

खिलौने और मनोरंजन :

खुदाई में टेराकोटा के बने खिलौने मिले हैं, जिनमें गाड़ियों, जानवरों, और मानव आकृतियों के खिलौने शामिल हैं।

2. मोहनजोदड़ो :

मोहनजोदड़ो पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित है, जो कराची से लगभग 510 किलोमीटर उत्तर में है। और इसे सभ्यता का सबसे महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है।मोहनजोदड़ो, जिसे ‘मृतकों का टीला’ भी कहा जाता है, सिंधु घाटी सभ्यता के सबसे महत्वपूर्ण और प्रमुख स्थलों में से एक है। यह स्थल पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित है और इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। मोहनजोदड़ो की खोज 1922 में राखलदास बनर्जी ने की थी। मोहनजोदड़ो की खोज और खुदाई ने प्राचीन मानव सभ्यता के बारे में हमें अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी दी है। यहां मोहनजोदड़ो स्थल के बारे में संपूर्ण जानकारी दी जा रही है:

जल निकासी प्रणाली:

मोहनजोदड़ो में अत्यंत उन्नत जल निकासी प्रणाली थी। प्रत्येक घर में स्नानगृह और कुंए थे, और सड़कों के किनारे नालियाँ बनी हुई थीं।

महान स्नानागार:

मोहनजोदड़ो के दुर्ग क्षेत्र में स्थित महान स्नानागार एक विशाल सार्वजनिक स्नानगृह था। इसका निर्माण पक्की ईंटों से किया गया था और इसमें जल निकासी की उत्तम व्यवस्था थी। इसे धार्मिक या सामाजिक उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता था।

धार्मिक स्थल:

मोहनजोदड़ो में मंदिरों या बड़े धार्मिक स्थलों का स्पष्ट प्रमाण नहीं मिला है, लेकिन विभिन्न मूर्तियों और मुहरों के आधार पर यह माना जाता है कि यहाँ के लोग देवी-देवताओं की पूजा करते थे।

कला और शिल्प:

मोहनजोदड़ो के लोग कला और शिल्प में अत्यंत निपुण थे। यहाँ पर टेराकोटा की मूर्तियाँ, तांबे और कांसे के बर्तन, और आभूषण मिले हैं।

शिल्प:

मोहनजोदड़ो में वस्त्र निर्माण, कुम्हारगिरी, धातुकर्म, और आभूषण निर्माण की उच्च गुणवत्ता देखने को मिलती है।

 

सिंधु घाटी सभ्यता के  शहरों की योजना :

सड़क व्यवस्था :

शहरों की सड़कें ग्रिड प्रणाली पर आधारित थीं। अतार्थ सिंधु घाटी सभ्यता के शहरों में सड़कों का जाल एक ग्रिड की तरह बिछा हुआ था। मुख्य सड़कें सीधी और चौड़ी होती थीं, जो उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली होती थीं। इसके अलावा, इन मुख्य सड़कों के बीच छोटी गलियाँ और रास्ते थे। मुख्य सड़कों की चौड़ाई लगभग 9-10 मीटर तक हो सकती थी, जबकि गलियों की चौड़ाई छोटी होती थी। ग्रिड प्रणाली ने शहरों को एक सुव्यवस्थित और संगठित रूप दिया। इससे यातायात प्रबंधन, जल निकासी, और अन्य नागरिक सुविधाओं को सुचारू रूप से संचालित करना आसान हो गया।

नाली व्यवस्था :

सड़कों के किनारे पक्की नालियों का जाल बिछा था। जिनसे जल निकासी की उत्कृष्ट व्यवस्था होती थी। यह नालियाँ अक्सर ढकी होती थीं, जिससे साफ-सफाई और स्वास्थ्य व्यवस्था अच्छी बनी रहती थी।

महान स्नानागार :

मोहनजोदड़ो का महान स्नानागार एक महत्वपूर्ण स्थापत्य अवशेष है, जो जल प्रबंधन और सार्वजनिक स्नान के महत्व को दर्शाता है।

सिंधु घाटी सभ्यता की अर्थव्यवस्था :

  कृषि

सिंधु घाटी सभ्यता के लोग मुख्यतः कृषि पर निर्भर थे। कृषि उनकी अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार था। मुख्य फसलों में गेहूं, जौ, चना, तिल और कपास शामिल थे। कपास की खेती विशेष रूप से महत्वपूर्ण थी, क्योंकि इससे वस्त्र निर्माण होता था। सिंधु घाटी सभ्यता के लोग सिंचाई के लिए नहरों, कुओं, और जलाशयों का उपयोग करते थे। सिंचाई की उन्नत प्रणाली ने कृषि उत्पादकता को बढ़ावा दिया। खुदाई में मिले उपकरणों से यह पता चलता है कि सिंधु घाटी के लोग उन्नत कृषि उपकरणों का उपयोग करते थे। तांबे और कांसे के बने हल, दराती, और कुदाल जैसे उपकरण पाए गए हैं। कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी एक महत्वपूर्ण गतिविधि थी। सिंधु घाटी सभ्यता के लोग गाय, भैंस, बकरी, भेड़, और सूअर जैसे पशुओं का पालन करते थे। पशुपालन से दूध, मांस, और अन्य उत्पाद मिलते थे।

व्यापार :

सिंधु घाटी सभ्यता का व्यापार बहुत उन्नत था और इसके लोग दूर-दूर तक व्यापारिक संबंध रखते थे। सिंधु घाटी सभ्यता के लोग मेसोपोटामिया (आधुनिक इराक) और फारस (आधुनिक ईरान) जैसे दूरस्थ क्षेत्रों के साथ व्यापार करते थे। खुदाई में मिली मुहरें और अन्य वस्तुएँ इस अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रमाण हैं। प्रमुख व्यापारिक वस्तुओं में कपास, तांबा, कांसा, सोना, चांदी, रत्न, और विभिन्न प्रकार के आभूषण शामिल थे। कपास की खेती और वस्त्र निर्माण ने विशेष रूप से व्यापार को बढ़ावा दिया। सिंधु घाटी सभ्यता के शहरों और गाँवों के बीच स्थानीय व्यापार होता था। लोग अनाज, कपड़े, मिट्टी के बर्तन, और अन्य वस्त्रों का व्यापार करते थे। लोथल जैसे स्थलों में बंदरगाह मिले हैं, जो समुद्री व्यापार के महत्वपूर्ण केंद्र थे। इसके अलावा, नदी मार्ग और स्थल मार्ग भी व्यापार के लिए उपयोग होते थे।

मुहरें और लेखा:

व्यापार और प्रशासनिक कार्यों में मुहरों का व्यापक उपयोग होता था। इन मुहरों पर विभिन्न पशु आकृतियाँ और चित्रलिपि अंकित होती थी। ये मुहरें व्यापारिक लेन-देन और सामान की पहचान के लिए उपयोग होती थीं।

शिल्पकला :

धातुकर्म, मिट्टी के बर्तन, और मनके निर्माण प्रमुख उद्योग थे।

सिंधु घाटी सभ्यता की कुछ और महत्वपूर्ण जानकारीया :

समाज और संस्कृति :

समाज स्पष्ट रूप से विभिन्न वर्गों में विभाजित था। खुदाई में मिले घरों और संरचनाओं से यह संकेत मिलता है कि उच्च वर्ग के लोग बड़े और सुसज्जित घरों में रहते थे, जबकि निम्न वर्ग के लोग छोटे और साधारण घरों में रहते थे। मकान पक्की ईंटों से बने होते थे, और इनमें कई कमरे, आंगन, और स्नानगृह होते थे। घरों में वेंटिलेशन और जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होती थी। सार्वजनिक भवनों में  अनाज भंडार, महान स्नानागार, और सभागृह शामिल थे। सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों की पूजा पद्धति के बारे में पूरी जानकारी नहीं है, लेकिन खुदाई में मिली मूर्तियों और सील्स से संकेत मिलता है कि वे पशुपति (शिव) और मातृ देवी की पूजा करते थे। मोहनजोदड़ो के महान स्नानागार को धार्मिक अनुष्ठानों के लिए उपयोग किया जाता था।

लिपि :

सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि चित्रलिपि थी, जो आज तक पढ़ी नहीं जा सकी है। यह लिपि मुहरों, बर्तनों, और अन्य वस्त्रों पर अंकित होती थी।

मूर्तिकला :

कांस्य की मूर्तियों, मिट्टी के खिलौनों और पत्थर की मूर्तियों के रूप में मिली हैं। प्रसिद्ध “नर्तकी” की कांस्य मूर्ति मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई है।

सिंधु घाटी सभ्यता पतन के कारण :

इस  सभ्यता के पतन के स्पष्ट कारण अभी तक नहीं ज्ञात हो सके हैं, लेकिन निम्नलिखित संभावित कारण हो सकते हैं:

  • पर्यावरणीय बदलाव : जलवायु परिवर्तन और नदी मार्ग में बदलाव।
  • बाढ़ : निरंतर बाढ़ की स्थिति ने बस्तियों को नष्ट कर दिया हो सकता है।
  • आक्रमण : कुछ पुरातत्वविद् आर्य आक्रमण को भी एक कारण मानते हैं।

सिंधु घाटी सभ्यता का अध्ययन भारतीय इतिहास और प्राचीन सभ्यताओं के विकास को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।

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